
क्या आपका बच्चा अचानक चुप-चाप रहने लगा है? क्या उसकी पढ़ाई में मन नहीं लग रहा या वह छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा करने लगा है?
ये लक्षण सिर्फ “बचपन की शरारत” नहीं है, बल्कि बच्चों में डिप्रेशन (अवसाद) के संकेत हो सकते हैं।
WHO के अनुसार, भारत में 10-19 साल के 7% बच्चे मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं, लेकिन 80% मामले पहचाने ही नहीं जाते।
इस ब्लॉग में हम आपको बताएंगे कि कैसे बच्चों में डिप्रेशन के संकेतों को पहचानें और उन्हें प्यार से संभालें।
बच्चों में डिप्रेशन क्या है?
डिप्रेशन सिर्फ बड़ों की समस्या नहीं है। बच्चे भी तनाव, उदासी, या हार्मोनल बदलावों की वजह से अवसाद का शिकार हो सकते हैं।
अंतर सिर्फ इतना है कि वे अपनी भावनाएं शब्दों में नहीं बता पाते। इसलिए, माता-पिता का यह जिम्मेदारी है कि वे बदलते व्यवहार को गंभीरता से लें।
बच्चों में डिप्रेशन के 7 मुख्य संकेत (Symptoms)

1.मनपसंद कामों में दिलचस्पी नही लेना।
- पहले जिस खेल या गतिविधि को वह पसंद करता था, अब वह उससे दूर भागने लगा है।
- दोस्तों या परिवार के साथ कम समय बिताता है।
2.पढ़ाई में मन नहीं लगना।
- अचानक मार्क्स कम आना या टीचर्स से शिकायतें मिलना।
- होमवर्क पूरा नहीं करना या स्कूल जाने से बचना।
3.नींद नहीं आना और भूख नहीं लगना।
- बहुत ज्यादा सोना या बिल्कुल न सो पाना।
- खाना छोड़ देना या ज्यादा खाने लगना।
4.चिड़चिड़ापन और गुस्सा अधिक होना।
- छोटी-छोटी बातों पर रोना या चिल्लाना।
- भाई-बहन या पालतू जानवरों पर हिंसक हो जाना।
5.हमेशा थकान में रहना और एनर्जी की कमी रहना ।
- बिना किसी शारीरिक मेहनत के हमेशा थका हुआ महसूस करना।
- खेलने या बाहर जाने से मना करना।
6.आत्मविश्वास की कमी होना ।
- बार-बार “मैं कुछ नहीं कर सकता” जैसे वाक्य बोलना।
- अपनी तारीफ होने पर भी खुश न होना।
7.बिमारी का बहाना बनाना।
बिना किसी मेडिकल कारण के सिरदर्द, पेटदर्द, या चक्कर आना
बच्चों में डिप्रेशन के कारण (Causes)
पारिवारिक माहौल
माता-पिता का तलाक होना, या घर में हमेशा लड़ाई-झगड़े, या बच्चों से भावनात्मक लगाव नहीं रखना।
स्कूल का दबाव – टीचर्स या दोस्तों से डर लगना बुलिंग, या एकेडमिक स्ट्रेस होना।
सोशल मीडिया का प्रभाव में आना ऑनलाइन ट्रोलिंग या “परफेक्ट लाइफ” की तुलना करना।
जैविक कारण हार्मोनल असंतुलन या पारिवारिक इतिहास रहना ।
बच्चों को डिप्रेशन से बचाने के 10 प्रैक्टिकल समाधान।

1.बातचीत का सुरक्षित माहौल बनाएं।
क्या करें?
- रोजाना 15 मिनट बच्चे के साथ अकेले बैठें।
- उससे पूछें, “आज तुम्हारा दिन कैसा रहा?” बिना जज किए सुनें।
क्या न कहें?
- “तुम्हारी तो कोई प्रॉब्लम ही नहीं है!”
- “उदास होने का नाटक मत करो।”
ये सब बातें नहीं करें।
2.. प्रोफेशनल कि मदद लेने में हिचकिचाएं नहीं।
- अगर लक्षण 2 हफ्ते से ज्यादा दिखें, तो चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट से सलाह जरूर लें।
- दवाइयां सिर्फ डॉक्टर की सलाह से ही दें।
3.रूटीन बनाएं और स्क्रीन टाइम लिमिट करें।
- बच्चे का दिनचर्या निश्चित करें: सोने, खाने, और पढ़ने का समय बनाएं।
- मोबाइल/लैपटॉप का उपयोग दिन में 1-2 घंटे से ज्यादा न करने दें।
4.शारीरिक गतिविधियों को कराएं ।
बच्चे को डांस, स्विमिंग, या साइकिल चलाने के लिए प्रेरित करें।
- एक्सरसाइज से सेरोटोनिन (खुशी हार्मोन) बढ़ता है।
40 मिनट डेली एक्सरसाइज साथ में कराएं।
5.सही पोषण का ध्यान रखें।
डिप्रेशन-रोधी फूड्स जैसे – अखरोट, केला, डार्क चॉकलेट, हरी सब्जियां खिलाएं।
नुकसानदायक : ज्यादा चीनी और प्रोसेस्ड फूड।
6.स्कूल मे जाकर शिक्षक से सलाह लें।
टीचर्स से बात करके बच्चे के व्यवहार की जानकारी लें।
- अगर स्कूल में बुलिंग हो रही है, तो तुरंत एक्शन लें।
7.पॉजिटिव रीइनफोर्समेंट दें।
- छोटी-छोटी उपलब्धियों पर तारीफ करें। जैसे: “तुमने आज होमवर्ख बहुत अच्छे से किया!”
- तुलना कभी भी नहीं करें: “तुम्हारा भाई तो तुमसे अच्छा है।”
8.आर्ट और म्यूज़िक सिखाएं।
- बच्चे को पेंटिंग, डांस, या गाना सिखाने वाली क्लासेस में डालें।
- क्रिएटिविटी भावनाओं को व्यक्त करने का सुरक्षित जरिया है।
9.पालतू जानवर को अपनाएं।
- डॉग या कैट जैसे पालतू जानवर बच्चों को इमोशनल सपोर्ट देते हैं।
- उनकी देखभाल करने से जिम्मेदारी की भावना आती है।
10.खुद को अपडेट करें।
- बच्चों की मेंटल हेल्थ पर किताबें पढ़ें या वर्कशॉप जॉइन करें।
मिथक vs तथ्य: बच्चों में डिप्रेशन।
1.मिथक: “बच्चों को डिप्रेशन नहीं होता।”
तथ्य: WHO के अनुसार, 10% बच्चे मानसिक विकारों से प्रभावित होते हैं।
2.मिथक: “यह सिर्फ ध्यान खींचने का एक तरीका है
तथ्य: डिप्रेशन एक गंभीर मेडिकल कंडीशन है, जिसमें इलाज कराना जरूरी है।
3.मिथक:”दवाइयाँ बच्चे को नुकसान पहुँचाती हैं।”
तथ्य: डॉक्टर की सलाह से दी गई दवाइयाँ सुरक्षित और प्रभावी होती हैं।

FAQs: बच्चों में डिप्रेशन से जुड़े सवाल।
Q1. क्या बच्चों को एंटीडिप्रेसेंट दवाएं दी जा सकती हैं?
-जवाब: हां, लेकिन सिर्फ साइकियाट्रिस्ट की सलाह से। बच्चों की उम्र और लक्षणों के आधार पर डोज तय होती है।
Q2. क्या स्कूल काउंसलर मदद कर सकते हैं?
जवाब: हां, कई स्कूलों में काउंसलिंग सेवाएं उपलब्ध हैं। उनसे बात करने में संकोच न करें।
Q3. बच्चा मदद लेने से मना करे तो क्या करें?
-जवाब: उसे समझाएं कि यह डॉक्टर उसकी “दिमागी ताकत” को बढ़ाने में मदद करेगा।
Q4. क्या योग और मेडिटेशन फायदेमंद है?
-जवाब: हां, प्राणायाम और माइंडफुलनेस एक्टिविटीज तनाव कम करती हैं।
निष्कर्ष:
बच्चों में डिप्रेशन को नजरअंदाज करना उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ करने जैसा है। याद रखें, “एक सपोर्टिव पेरेंट ही बच्चे की सबसे बड़ी थेरेपी होता है!