Child Labour Day यानी विश्व बाल श्रम निषेध दिवस हर वर्ष 12 जून को मनाया जाता है। यह दिन विश्व स्तर पर बाल श्रम के खिलाफ जागरूकता बढ़ाने और बच्चों को उनके अधिकार—विशेषकर शिक्षा, सुरक्षा और खुशहाल बचपन—दिए जाने की आवश्यकता पर ध्यान केंद्रित करने के लिए समर्पित है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने 2002 में इस दिवस की शुरुआत की थी, ताकि दुनिया को याद दिलाया जा सके कि बाल श्रम गरीबी, अशिक्षा और सामाजिक असमानता जैसी जटिल समस्याओं से घिरा है और इसका उन्मूलन जरूरी है। इस दिन के आयोजन का मुख्य उद्देश्य दुनिया भर में बाल श्रम के खिलाफ मिलकर प्रयासों को तेज करना है ताकि प्रत्येक बच्चे को शिक्षा और बचपन का अधिकार मिल सके।
जरूरी बातें।
बाल श्रम (Child Labour) वह कार्य है जिसे बच्चे अपनी आयु या क्षमताओं के अनुसार नहीं कर सकते; यदि वह काम उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य या विकास को बाधित करता है तो उसे बाल श्रम माना जाता है। 2024 में वैश्विक स्तर पर लगभग 13.8 करोड़ बच्चे बाल श्रम में संलग्न थे, जिनमें से करीब 5.4 करोड़ बच्चे ऐसे खतरनाक कामों में लगे थे जो उनके जीवन, स्वास्थ्य या विकास को सीधा खतरा पहुंचा सकते हैं। ये आंकड़े अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) और युनिसेफ द्वारा 11 जून, 2025 को जारी किए गए थे, जो दिखाते हैं कि वर्ष 2000 के बाद से विश्व में बाल श्रम की संख्या लगभग आधी हुई है, लेकिन अभी भी गिरावट की दर धीमी बनी हुई है।
भारत में बाल श्रम की स्थिति भी चिंताजनक है। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 10.1 मिलियन (लगभग 1.01 करोड़) बाल श्रमिक थे, जिनमें 5 से 14 वर्ष आयु के बच्चे शामिल हैं। ये बच्चे ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि, घरेलू काम, निर्माण, और दुकानों में काम करते हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में बाल श्रम की समस्या सबसे अधिक है—ये पांच राज्य मिलकर देश भर के बाल श्रम का लगभग 55% हिस्सा यहीं हैं। इसके अतिरिक्त, भारत में लगभग 4.27 करोड़ बच्चे शिक्षा से वंचित हैं, जो बाल श्रम की मुख्य कारणों जैसे गरीबी और शिक्षा की कमी को दर्शाता है। इन सब बातों से यह साफ़ है कि बाल श्रम की जड़ें गरीबी, असमानता और अशिक्षा से हैं, जिन्हें दूर किए बिना इस समस्या का स्थायी समाधान नहीं हो सकता।

मुख्य इतिहास, महत्व, उद्देश्य।
इतिहास:
Child Labour Day की शुरूआत 12 जून 2002 में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने की थी। इसका उद्देश्य था बच्चों को बचपन और शिक्षा का अधिकार सुनिश्चित करने के लिए विश्व का ध्यान खींचना। पहले साल से ही ILO ने बाल श्रम के सबसे खराब रूप (Worst Forms of Child Labour) के उन्मूलन के लिए 1999 में कार्यवाही की , और 2002 में इस दिवस की स्थापना से जन जागरूकता फैलाई गई। 12 जून की तारीख इसलिए चुनी गई क्योंकि इस दिन 1973 में संघर्षरत मजदूरों के लिए निकासी और पुनर्वास पर सम्मेलन हुआ था।
महत्व एवं उद्देश्य:
Child Labour Day दिवस का महत्व इस तरह से समझा जा सकता है कि विश्व भर में करोड़ों बच्चे ऐसे कामों में लगे हैं जिससे उन्हें शिक्षा, खेल-कूद और सामान्य बचपन के अधिकार से वंचित हो रहे हैं। इस दिवस का उद्देश्य सरकारों, नागरिक समाज, श्रमिक संगठनों और आम लोगों को एकजुट करना है ताकि बाल श्रम के खिलाफ दिशानिर्देश बनाए जा सकें और इसे समाप्त करने की दिशा में ठोस कदम उठाए जा सकें। उदाहरण के लिए, Child Labour Day 2025 की थीम है “प्रगति स्पष्ट है, लेकिन अभी और काम बाकी है: आइए प्रयासों को तेज करें”, जो स्पष्ट संकेत देती है कि बाल श्रम उन्मूलन के लिए अब और भी तेज़ी से काम करने की जरूरत है। हर साल इस दिवस पर लोग गली- गॉव से लेकर सभागारों तक रैलियाँ निकालते हैं, संगोष्ठियाँ आयोजित करते हैं और सोशल मीडिया पर जागरूकता संदेश साझा करते हैं ताकि बाल श्रम के हानिकारक प्रभावों को मिटाया जा सके।
Child Labour Day आयोजन से विश्व भर में यह संदेश जाता है कि हर बच्चा पढ़े-लिखे समाज का निर्माता है और उसे काम की गुलामी से बचाना हमारी जिम्मेदारी है। बाल श्रम केवल अपराध नहीं है, बल्कि एक सामाजिक और आर्थिक समस्या है जिसकी रोकथाम करना सामाजिक न्याय और मानव विकास के लिए अनिवार्य है।
समाधान के तरीके।
बाल श्रम की समस्या का समाधान बहु-आयामी दृष्टिकोण से ही संभव है। इसमें सरकार, समाज और परिवार तीनों की भागीदारी जरूरी है। निचे लिखे उपाय इस दिशा में मददगार साबित हो सकते हैं।

गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करना:
प्रत्येक बच्चे को उम्र के अनुसार मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा मिले, जिससे गरीबो के बच्चे भी स्कूल से जुड़ सके। अच्छी शिक्षा मिलने से बच्चे भविष्य में बेहतर अवसर प्राप्त कर सकेंगे और उन्हें बाल श्रम में फंसने की नौबत ही नहीं आएगी।
गरीबी उन्मूलन एवं आर्थिक सहायता: गरीब परिवारों को प्रतिमाह वित्तीय सहायता, खाद्य सुरक्षा (जैसे मध्याह्न भोजन) और रोज़गार की गारंटी जैसी योजनाएं उपलब्ध कराई जानी चाहिए। उदाहरण स्वरूप, राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना (NCLP) के तहत 14 लाख से अधिक बच्चों को मुख्यधारा की शिक्षा में जोड़ा गया है और उन्हें ट्यूटोरियल शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण, मध्याह्न भोजन, छात्रवृत्ति तथा स्वास्थ्य सेवाएं दी जा रही हैं। इसी प्रकार निम्न समुदाय में भी निर्माण कार्यक्रम एवं सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के माध्यम से परिवारों की आय बढ़ाकर बाल श्रम के आर्थिक कारण को दूर किया जा सकता है।
जागरूकता अभियान चलाकर:
सामुदायिक स्तर पर लगातार जागरूकता फैलाकर माता-पिता व रोजगार देनेवाले को बाल श्रम के दुष्परिणामों के प्रति सचेत करना होगा। इसके लिए स्कूलों में बाल श्रम अधिकारों की पाठ्यक्रम चलाकर, पंचायत स्तर पर बैठकें आयोजित कराकर और मीडिया एवं सोशल मीडिया पर संदेश साझा करना कारगर उपाय हैं। व्यक्ति विशेष द्वारा सोशल मीडिया पर “No to Child Labour”, “बाल श्रम नहीं, बाल विकास चाहिए” जैसे हैशटैग और संदेश साझा कर जागरूकता को बढ़ावा दिया जा सकता है।
कानूनी कड़ाई से परिवर्तन:
बाल श्रम संबंधी कानूनों जैसे बाल एवं किशोर श्रम (निषेध एवं विनियमन) अधिनियम, 1986 (संशोधित 2016) को सख्ती से लागू करना चाहिए। यह कानून 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को किसी भी व्यवसाय में काम पर रखने पर प्रतिबंध लगाता है और 14-18 वर्ष के बच्चों को भी खतरनाक उद्योगों में काम करने से रोकता है। ऐसे नियमों का उल्लंघन करने वाले नियोक्ताओं पर भारी जुर्माना और जेल की सजा होनी चाहिए। उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले में 2024-25 में 50 से 20 हजार रुपये के जुर्माने के साथ 130 से अधिक बच्चों को बाल श्रम से मुक्त कराया गया है। इसके अलावा पुलिस और मजदूर विभाग को सूचना मिलने पर तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए।
सरकारी शिकायत प्रणाली (पेंसिल पोर्टल) का उपयोग: केंद्र सरकार ने PENCIL पोर्टल (Platform for Effective Enforcement for No Child Labour) बनाया है, जिसमें किसी भी व्यक्ति के लिए बाल श्रम की सूचना ऑनलाइन दर्ज कराना आसान हो गया है। अगर किसी स्थान पर बाल श्रम देखा जाए तो पेंसिल पोर्टल या 1098 हेल्पलाइन के माध्यम से रिपोर्ट की जा सकती है, जिससे प्रशासन मौके पर कार्रवाई कर बच्चों को सुरक्षित स्कूलों में भेज सके।
सामाजिक संगठनों का सहयोग:
सरकारी प्रयासों के साथ-साथ गैर-सरकारी संगठन (NGO) और बचपन बचाओ आंदोलनों की भागीदारी बेहद जरूरी है। ये संगठन परिवारों का सर्वे कर बाल श्रम छोड़ने वालों को सहायता देते हैं और बच्चों को शिक्षा से जोड़ने में मदद करते हैं। उदाहरणतः सेव द चिल्ड्रन, कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन फाउंडेशन, बचपन बचाओ आंदोलन इत्यादि ने लाखों बच्चों को स्कूल की शिक्षा और कड़ी मेहनत से बचाया है।
इन उपायों के किर्यान्वयन से बच्चों को बाल श्रम की पकड़ से छुटकारा दिलाया जा सकता है और उन्हें एक सुरक्षित बचपन दिया जा सकता है।

फायदे।
बाल श्रम के उन्मूलन से व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक कई लाभ होते हैं। सबसे पहले, बालक को पूरा बचपन मिलने से उनकी शारीरिक और मानसिक सेहत बेहतर होती है। जब बच्चे स्कूल जाते हैं और स्वस्थ गतिविधियों में भाग लेते हैं, तो उनका आत्मविश्वास बढ़ता है और वे भविष्य में अच्छे नागरिक बनते हैं। हरियाणा राज्यपाल ने भी बताया है कि बाल श्रम से मुक्त कर बच्चों को शिक्षा प्रदान करने से ही उनका भविष्य उज्जवल बन सकता है।
समाज के स्तर पर देखा जाए तो पढ़े-लिखे युवा नई सोच और कुशलता के साथ अर्थव्यवस्था में योगदान देते हैं। मानव पूंजी में वृद्धि होती है क्योंकि अधिक शिक्षित लोग आगे चलकर अविष्कार, उद्यमिता और सामाजिक सुधार के कार्यों में सक्रिय हो जाते हैं। इसके विपरीत बाल श्रम में लगे बच्चों की कौशल विकास का अवसर छिन जाता है, जिससे देश का दीर्घकालिक विकास प्रभावित होता है। बाल श्रम में कमी से क़ानूनी व सामाजिक सुरक्षा भी बढ़ती है—उल्लंघन करने वाले पर अंकुश लगने से अपराध में गिरावट आती है और बच्चों को अपराध या तस्करी जैसी जोखिमपूर्ण गतिविधियों से सुरक्षा मिलती है।
अंततः, बाल श्रम का पूर्ण उन्मूलन एक न्यायपूर्ण और समान समाज की दिशा में बड़ा कदम है। जब हर बच्चा स्कूल जाएगा तो अपना बचपन निखार पाएगा, तभी समाज में असमानता घटेगी और गरीबी की बीमारी भी कम होगी। इससे परिवारों में जीवनस्तर सुधरेगा, क्योंकि बच्चों के बजाय उनके माता-पिता रोज़गार करने लगेंगे। इस तरह, बाल श्रम उन्मूलन से समुदाय के सभी वर्गों को लाभ होगा—बच्चों को शिक्षा मिलेगी, परिवारों की आमदनी बढ़ेगी और समाज में समग्र विकास आएगा।
Child Labour Day के अवसर पर किए जाने वाले कार्य।
Child Labour Day दिवस पर पूरे देश में जागरूकता फैलाने के लिए कई कार्यक्रम और अभियान आयोजित किए जाते हैं। राज्य और जिला स्तर पर जागरूकता रैलियाँ, स्कूलों में संगोष्ठी, बाल महोत्सव तथा समाज सेवी अभियान चलाए जाते हैं। उदाहरण स्वरूप, उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले में 12 जून 2025 को बाल श्रम निषेध दिवस के अवसर पर जिला प्रशासन द्वारा जन जागरूकता रैली निकाली गई, जिसमें अभिभावकों और शिक्षकों को इस समस्या के समाधान के तरीकों के बारे में बताया गया।
सरकारी एवं गैर-सरकारी संगठन सोशल मीडिया, रेडियो और टीवी पर जन जागरूकता संदेश देते हैं। स्कूलों में कार्यक्रम आयोजित होते हैं जहाँ छात्र-छात्राएं नारे, पोस्टर और नाटक के जरिए बाल श्रम के दुष्परिणामों को उजागर करते हैं। कई जगह पेंसिल पोर्टल के उपयोग संबंधी जानकारी भी दी जाती है ताकि लोग बाल श्रम की सूचना डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से दे सकें।
इसके अलावा, स्वयं नागरिक भी इस दिन के महत्व को समझते हुए अपने-अपने क्षेत्र में कदम उठा सकते हैं। वे सोशल मीडिया पर “Child Labour Day” जैसे हैशटैग चलाकर संदेश साझा कर सकते हैं, स्थानीय स्कूलों में किताबों या स्टेशनरी दान कर सकते हैं, या आसपास के गरीब परिवारों को सरकारी योजनाओं के लिए मार्गदर्शन कर सकते हैं। प्रत्येक व्यक्ति की छोटी पहल भी मिलकर बड़े परिवर्तनों की नींव बन सकती है। इस दिन के उत्सव का मुख्य उपयोग यही है कि समाज के सभी वर्ग बाल श्रम के खिलाफ अपनी प्रतिबद्धता को दोहराएं और बच्चों को सुरक्षित बचपन देने का संकल्प लें।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
Child Labour Day कब मनाया जाता है?
उत्तर: विश्व बाल श्रम निषेध दिवस हर साल 12 जून को मनाया जाता है। भारत में भी इस दिन समान रूप से बाल श्रम की समस्या के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
Child Labour Day का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर: इस दिवस का उद्देश्य बच्चों को शोषण और बाल श्रम से बचाना है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि हर बच्चे को पढ़ने, खेलने और सुरक्षित बचपन जीने का अधिकार है।
भारत में बाल श्रम की स्थिति कैसी है?
उत्तर: 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में लगभग 1.01 करोड़ बाल श्रमिक थे (5-14 वर्ष आयु)। ये बच्चे मुख्यतः असंगठित क्षेत्रों में जैसे कृषि, निर्माण, घरेलू काम आदि में काम करते हैं। गरीबी, अशिक्षा और सामाजिक असमानता बाल श्रम को बढ़ावा देती हैं।
बाल श्रम को रोकने के लिए कौन-कौन से कानून हैं?
उत्तर: भारत में बाल एवं किशोर श्रम (निषेध एवं विनियमन) अधिनियम, 1986 (संशोधित 2016) मुख्य कानून है, जो 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को किसी भी काम में लगाने पर पूर्ण रूप से रोक लगाता है और 14-18 वर्ष के बच्चों को भी खतरनाक उद्योगों में काम करने से रोकता है। इसके अलावा राइट टू एजुकेशन ऐक्ट, 2009 के तहत 6-14 आयु वर्ग के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार है, जिससे उन्हें स्कूल में रखा जाए। इन कानूनों के उल्लंघन पर भारी जुर्माना और जेल की सजा का प्रावधान है।
हम बाल श्रम निषेध दिवस पर क्या कर सकते हैं?
उत्तर: Child Labour Day पर आप बाल श्रम के खिलाफ जागरूकता बढ़ाने में हिस्सा ले सकते हैं। आप अपने आस-पास के लोगों को बाल श्रम के दुष्परिणामों के बारे में बता सकते हैं, सोशल मीडिया पर जागरूकता संदेश साझा कर सकते हैं, नज़दीकी स्कूलों में सहायता कर सकते हैं, या PENCIL पोर्टल पर बाल श्रम की शिकायत दर्ज करा सकते हैं।
Child Labour Day 2025 की थीम क्या है?
उत्तर: Child Labour Day 2025 की थीम है “प्रगति स्पष्ट है, लेकिन अभी और काम बाकी है: आइए प्रयासों को तेज करें”। यह थीम हमें याद दिलाती है कि बाल श्रम उन्मूलन में अब तक कुछ सकारात्मक कदम उठाए गए हैं, लेकिन इस दिशा में और भी लगातार मेहनत की आवश्यकता है।
निष्कर्ष
Child Labour Day हमें हर साल याद दिलाता है कि हर बच्चा पढ़े-लिखे समाज का भविष्य है, न कि काम में उलझा हुआ मजदूर। बाल श्रम उन्मूलन के लिए किए गए प्रयासों से दुनिया में काफी सुधार आया है, लेकिन अभी भी लंबा रास्ता तय करना बाकी है। बच्चों को उनके अधिकार दिलाकर ही हम राष्ट्र की समृद्धि सुनिश्चित कर सकते हैं।